वैष्णो देवी यात्रा तीर्थ दंतकथा है कि सात सौ से भी अधिक वर्ष पहले भगवान विष्णु की एक भक्त भगवान राम की पूजा अर्चना किया करती थी और उस भक्त ने ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी । एक दिन असुरों के देवता भैंरोनाथ ने उसे देखा और उस पर आसक्त होकर उसका पीछा किया । बाणगांगा के निकट देवी को प्यास लगी तो उन्होंने भूमि में एक तीर मारा जहां से जल की धारा फूट पड़ी । चरणपादुका, अर्थात उनके पैरों के चिन्ह, वह स्थान है जहां पर देवी ने विश्राम किया था । उसके बाद उन्होंने अर्धक्वारी में ध्यान साधना की । त्रिकुटा पर्वत में 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित वैष्णो देवी तीर्थ एक पवित्र गुफा है । जम्मू से 61 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गुफा 30 मीटर लम्बी और 15 मीटर चौड़ी है । गुफा के दूसरे छोर पर देवी के तीन रूपों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को समर्पित पवित्र मंदिर हैं । तीर्थयात्री छोटे-छोटे समूहों में एक सकरे रास्ते होते हुए तथा बर्फ जैसे ठण्डे पानी से गुजरते हुए यहां तक पहुंचते हैं । दंत कथा के अनुसार असुर भैंरोनाथ से बचने के लिए देवी इसी गुफा में छुप गयीं थी । बाद में देवी ने उस असुर का वध कर दिया । वैष्णों देवी तीर्थ तक कटरा, जोकि वैष्णों देवी से 13 की दूरी पर स्थित है, से जाया जा सकता है । कटरा से तीर्थयात्री एक किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर बाणगंगा पहुंचते हैं । बाणगंगा के बारे में यह प्रसिद्ध है कि इसी स्थान पर देवी ने अपनी प्यास बुझाई थी । यहां से 6 किलोमीटर आगे अर्धक्वारी की प्रसिद्ध गुफा है । यहां पर देवी ने नौ माह तक ध्यान साधना की थी ।
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